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कविता

स्मार्ट-सिटी

अनवर सुहैल


ये जगह जो अभी
योजनाओं और नीतियों में
ले रही आकार
जिस पर झूम रही सरकार
घात लगाए है विश्व-व्यापी व्यापार
और तुम हो कितने गंवार
तुम जैसों के कारण ही
नहीं हो पा रही स्मार्ट-सिटी साकार...
सोच रहे योजनाकार
कैसे हो उनका स्वप्न साकार
एक ऐसा शहर
जहाँ नहीं हो पंक्ति का आखिरी आदमी
वही तो गंधाता है और गंदगी फैलाता है
किचिर-किचिर करता है
पचर-पिच्च थूकता है
जहाँ-तहाँ हगता-मूतता है
कचरे के ढेर में कुकुरमुत्ते-सी
झोंपड़ी में सोता है जहाँ आए दिन
पैदा होते अवांछित बच्चे
क्या इन सबके बीच बन सकता है
स्मार्ट-सिटी का जादुई-स्वरूप...
स्मार्ट-सिटी के लिए
स्मार्ट नागरिकों की होगी भरती
जिनके पास हों रंग-बिरंगे स्मार्ट-कार्ड,
कई शहरों में मकान, फार्म-हाउस
ऊँचा ओहदा, उच्च कुल का धनपति गोत्र
लंबी गाड़ियाँ, सजीले ड्राईवर, कड़क रक्षक
स्मार्ट बीवियाँ, स्मार्ट बच्चे, स्मार्ट सेक्रेटरी
जो नहीं होगा पात्र
उसे नहीं होगा स्मार्ट सिटी में प्रवेश का अधिकार
स्व-चालित सेंसर पकड़ डालेंगे
यदि किसी ने जबरन घुसने का किया प्रयास
ऐसे नामुराद गंवार
होंगे सजा के भागीदार......


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